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प्रश्न

बाइबल बलात्कार के बारे में क्या कहती है?

उत्तर


बाइबल बलात्कार के विषय को सम्बोधित करती है। जैसा कि अपेक्षित है, जब बाइबल बलात्कार के अपराध का उल्लेख करती है, तो इसे मानवीय शरीर के विरूद्ध किए जाने वाले व्यवहार के लिए परमेश्‍वर की रूपरेखा के व्यापक उल्लंघन के रूप में दर्शाया गया है (उत्पत्ति 34)। जब भी इसका उल्लेख किया जाता है, तो बाइबल बलात्कार की निन्दा करती है। उदाहरण के लिए, यहोशू के नेतृत्व में प्रतिज्ञा किए गए देश में प्रवेश करने से पहले इस्राएल जाति को इससे सम्बन्धित व्यवस्था में कई विशेष कानूनों को दिया गया है। ये सन्दर्भ (व्यवस्थाविवरण 22:13-29) सीधे तौर पर एक स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन सम्बन्ध स्थापित करने या जिसे हम आज बलात्कार के रूप में जानते हैं, के विरूद्ध बात करते हैं। यह आदेश स्त्रियों की रक्षा और इस्राएल जाति को पापी गतिविधियों से बचाने के लिए था।

व्यवस्थाविवरण 22:25-27: में इस दण्ड के नियम को निर्दिष्ट किया गया है, जिसमें मूसा की व्यवस्था के अनुसार एक मंगनी की हुई स्त्री के साथ बलात्कार करने वाले व्यक्ति के लिए दण्ड का प्रावधान है। पुरुष को पत्थरवाह कर दिया जाना चाहिए था, जबकि उस स्त्री को निर्दोष माना गया था। यद्यपि मूसा के समय में मूसा की व्यवस्था इस्राएल देश के लिए ही था, तथापि यह सिद्धान्त स्पष्ट है कि बलात्कार परमेश्‍वर की दृष्टि में पापी गतिविधि है और व्यवस्था के अधीन, बलात्कारी के लिए सबसे चरम दण्ड – मृत्यु है।

इस विषय के सम्बन्ध में पुराने नियम में कुछ कठिन सन्दर्भ भी पाए जाते हैं। पहला व्यवस्थाविवरण 22:28-29 में मिलता है, "यदि किसी पुरुष को कोई कुँवारी कन्या मिले जिसके विवाह की बात न लगी हो, और वह उसे पकड़कर उसके साथ कुकर्म करे, और वे पकड़े जाएँ, तो जिस पुरुष ने उससे कुकर्म किया हो वह उस कन्या के पिता को पचास शेकेल रूपा दे, और वह उसी की पत्नी हो, उसने उसका शील भंग किया, इस कारण वह जीवन भर उसे न त्यागने पाए।” यदि बलात्कार पीड़िता की मंगनी नहीं हुई है, तब बलात्कारी को विभिन्न परिणामों का सामना करना पड़ता था।

हमें प्राचीन संस्कृति को अपने आँखों पर पहने हुए व्यवस्था विवरण 22:28-29 को देखना चाहिए। उन दिनों में, सामाज में स्त्रियों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था। वे अपने लिए सम्पत्ति नहीं खरीद सकती थीं। उन्हें अपनी जीविका के लिए नौकरी नहीं मिलती थी। यदि किसी स्त्री का पिता, पति या पुत्र नहीं था, तो उसे कोई कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं था। इसके विकल्प गुलामी या वेश्यावृत्ति थी। यदि कोई अविवाहित स्त्री कुँवारी नहीं थी, तो उसके लिए विवाह करना अत्यन्त कठिन होता था। यदि वह विवाह योग्य नहीं है, तो उसके पिता के लिए वह अधिक उपयोगी नहीं होती थी।

एक कुँवारी लड़की का बलात्कार करने पर परमेश्‍वर की ओर से दण्ड – धन सम्बन्धी जुर्माना और जीवन पर्यन्त चलने वाला दायित्व था – जिसे बलात्कारी को उसकी गतिविधि के लिए उत्तरदायी ठहराकर बलात्कार को रोकने के लिए रूपरेखित किया गया था। उसने उसके जीवन को नष्ट कर दिया था; अब यह उसका उत्तरदायी था कि वह उसके शेष जीवन में उसकी सहायता करे। यह आधुनिक युग के लोगों को सुनने में उचित न प्रतीत हो, परन्तु हम उस संस्कृति में नहीं रहते हैं, जिसमें वे रहते थे। 2 शमूएल 13 में, राजकुमार अम्मोन ने अपनी सौतेली बहन, तामार के साथ बलात्कार किया। बलात्कार भय और शर्म की बात थी, तथापि अविवाहित होने के कारण तामार ने उससे (अपने सौतेले भाई से) विवाह करने की भीख माँगी, इतने पर उसने उसकी विनती को अस्वीकार कर दिया। और उसका सगा भाई, अबशालोम, इस स्थिति से बहुत अधिक निराश था कि उसने अम्मोन की हत्या कर दी। उस समय स्त्रियों में कौमार्य का अत्यधिक महत्व था।

बाइबल के आलोचक भी गिनती 31 (और इसी तरह के सन्दर्भों) की ओर संकेत करते हैं, जिसमें इस्राएलियों को उन जातियों से स्त्री पकड़ लेने की अनुमति दी गई थी, जिन पर उन्होंने विजय प्राप्त की थी। आलोचकों का कहना है कि यह बाइबल की ओर से बलात्कारी को छोड़ देने वाला या यहाँ तक कि बलात्कार को बढ़ावा देने वाला एक उदाहरण है। यद्यपि, यह सन्दर्भ पकड़ी गई स्त्रियों के साथ बलात्कार करने के बारे में कुछ नहीं कहता है। यह अनुमान लगा लेना गलत है कि पकड़ी गई स्त्रियों का बलात्कार किया जाना था। सैनिकों को स्वयं को और उनके बंदियों को शुद्ध करने की आज्ञा दी गई थी (वचन 19)। बलात्कार ने इस आदेश का उल्लंघन किया होता (लैव्यव्यवस्था 15:16-18 को देखें)। जिन स्त्रियों को बंदी बना लिया गया था, उन्हें कभी भी यौन वस्तुओं के रूप में नहीं जाना गया है। क्या बंदी स्त्रियों ने इस्राएलियों के साथ विवाह किए जाने की सम्भावना को बताया है? हाँ, बताया है। क्या कोई संकेत पाया जाता है कि स्त्रियों का बलात्कार करने या यौन सुख देने के लिए गुलामी करने के लिए मजबूर किया गया था? बिलकुल नहीं।

नए नियम में, बलात्कार का सीधे उल्लेख नहीं किया गया है, परन्तु उन दिनों की यहूदी संस्कृति के भीतर, बलात्कार को यौन अनैतिकता माना जाता था। यीशु और प्रेरितों ने लैंगिक अनैतिकता के विरूद्ध बात की, यहाँ तक कि इसे तलाक के लिए उचित आधार के रूप में प्रस्तुत किया (मत्ती 5:32)।

इसके अतिरिक्त, नया नियम यह स्पष्ट करता है कि मसीही विश्‍वासियों को अपने ऊपर शासन करने वाले अधिकारियों के नियमों का पालन करना है (रोमियों 13)। न केवल बलात्कार नैतिक रूप से गलत है; यह अधिकांश स्थानों पर सम्बन्धित देश के नियमों के अनुसार गलत भी है। जैसे, जो भी इस अपराध को करेगा, उसे गिरफ्तार होने और कारावास सहित अन्य परिणाम को प्राप्त करने की अपेक्षा करनी चाहिए।

बलात्कार से पीड़ित स्त्रियों के लिए, हमें बहुत अधिक सावधानी और करुणा को प्रस्तुत करना चाहिए। परमेश्‍वर का वचन अक्सर आवश्यकता में पड़े हुओं और कमजोर स्थितियों में रहने वाले लोगों की सहायता करने के बारे में बोलता है। मसीहियों को किसी भी तरह से बलात्कार के पीड़ितों की सहायता करके मसीह के प्रेम और करुणा का आदर्श मॉडल बनाना चाहिए।

लोग पाप करने के लिए उत्तरदायी हैं, जिसमें बलात्कार भी सम्मिलित है। तथापि कोई भी परमेश्‍वर के अनुग्रह से परे नहीं है। यहाँ तक कि वे लोगों भी जिन्होंने सबसे बड़े पाप को किया है, परमेश्‍वर उन्हें क्षमा कर सकता है, यदि वे पश्‍चाताप करते हैं और अपने बुरे तरीकों से मुड़ते हैं (1 यूहन्ना 1:9)। यह कानून के अनुसार दिए जाने वाले दण्ड की आवश्यकता को नहीं हटाता है, परन्तु यह आशा और नए जीवन के मार्ग को प्रस्तुत कर सकता है।

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