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प्रश्न

बाइबल अहंकार के बारे में क्या कहती है?

उत्तर


व्यावहारिक रूप से प्रत्येक घटना जिस में बाइबल में घमण्ड, अभिमान या घृणा का उल्लेख किया गया है, यह एक व्यवहार या मनोदृष्टि के रूप में है, जिसे परमेश्वर पसन्द नहीं करता है। बाइबल हमें बताती है कि जो लोग अहंकारी हैं और जिनके मन में घमण्ड है, वे परमेश्वर के लिए घृणास्पद हैं: “सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है; मैं दृढ़ता से कहता हूँ, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे” (नीतिवचन 16:5)। सात वस्तुओं की सूची में से बाइबल हमें बताती है कि परमेश्वर जिस बात से घृणा करता है, वह "घमण्ड से चढ़ी हुई आँखें" हैं, जो प्रथम स्थान पर पाई जाती हैं (नीतिवचन 6:16-19)। यीशु ने स्वयं कहा था, "जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है," और तब वह उन लोगों की तेरह विशेषताओं को सूचीबद्ध करता है, जो परमेश्वर के अनुग्रह से रहित हैं, अहंकार को यौन अनैतिकता और हत्या के तुल्य माना जाता है (मरकुस 7:20- 20-23)।

नए नियम में शब्द अहंकार के लिए यूनानी भाषा के दो रूप पाए जाते हैं, जो कि अनिवार्य रूप से एक ही अर्थ को देते है। हूपेरोग्कोस का अर्थ है "सूजन" या "अपव्ययी" जैसा कि "व्यर्थ घमण्ड की बातों" में उपयोग किया गया है (2 पतरस 2:18; यहूदा 1:16)। दूसरा फ़्यूज़ियोसिस है, जिसका अर्थ "आत्मा से भरा हुआ" या "घमण्डी, अभिमानी" (2 कुरिन्थियों 12:20)। विश्वासियों के लिए यह स्वीकार करना असम्भव है कि अभिमानी होना या एक प्रतापी व्यवहार का होना भक्ति से भरे जीवन के विरोध में है (2 पतरस 1:5-7)। अहंकार स्वयं-के-महत्वपूर्ण होने की एक भावना के प्रति अत्यधिक-प्रदर्शन से अधिक कुछ नहीं है (2 तीमुथियुस 3:2)। यह इस बात कि "सब कुछ मेरे बारे में है" की मानसिकता से सम्बन्धित है, जो कहती है कि, "संसार मेरे चारों ओर घूम रहा है" (नीतिवचन 21:24)।

घमण्ड की अपेक्षा, बाइबल हमें विपरीत शिक्षा देती है। पहला कुरिन्थियों 13:4 कहता है, “प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।” मसीहियों को प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए बुलाया जाता है; अहंकार उस प्रेम का विरोधी है। रोमियों 12:3 कहता है, "क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूँ कि जैसा समझना चाहिए उससे बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे; पर जैसा परमेश्‍वर ने हर एक को विश्‍वास परिमाण के अनुसार बाँट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।" हम ईश्वरीय विनम्रता बनाए रखते हुए अभिमानी नहीं हो सकते।

घमण्डी होना और यह कहना कि "मैं तुमसे उत्तम हूँ" डराने-धमकाने वाला व्यवहार होता है और दूसरों के साथ अपने सम्बन्धों को नष्ट कर देता है। यद्यपि, यीशु ने हमें दूसरों को अपनी तुलना में प्रथम स्थान देने की शिक्षा दी है: “पर तुम में ऐसा नहीं है, वरन् जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने; और जो कोई तुम में प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने। क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे (मरकुस 10:43-45)। यदि हमारा दृष्टिकोण घमण्ड वाला है, तो हम कभी भी दूसरों की सेवा अच्छी रीति से नहीं कर पाएंगे।

प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी में कलीसिया को लिखे अपने पत्र में इसी जैसी भावनाओं को प्रतिध्वनित किया: "विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो" (फिलिप्पियों 2:3)। यह हमारे आज के संसार के प्रतिस्पर्धी स्वभाव के प्रति विस्तृत रूप से विपरीत है, और निश्चित रूप से हमारे लिए अभिमानी होने के लिए कोई स्थान को नहीं छोड़ता है। जहाँ एक ओर संसार हमें किसी भी कीमत की चिन्ता किए बिना शीर्ष पर पहुँचने के लिए प्रयास की ओर धकेलता है, और जब हम वहाँ पहुँच जाते हैं, तो हमें अभिमानी हो जाने की शिक्षा देता है, यीशु हमें एक भिन्न ही तरह की आज्ञा देते हैं: “क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा” (लूका 14:11; की तुलना याकूब 4:6 से करें)। हमारा प्राथमिक लक्ष्य, सांसारिक सफलता के किसी भी स्तर में, परमेश्वर की महिमा करना है (कुलुस्सियों 3:17, 23)।

परमेश्वर और अपने साथ-चारों ओर रहने वाले व्यक्तियों के प्रति हमारे दृष्टिकोण के बारे में, परमेश्वर हमें दो प्रतिज्ञाएँ देता है। पहली, कि अभिमानी को दण्ड दिया जाएगा (नीतिवचन 16:5; यशायाह 13:11) और, दूसरी, “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है” (मत्ती 5:3)। क्योंकि वास्तव में, "परमेश्‍वर अभिमानियों का विरोध करता है, परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है" (1 पतरस 5:5; की तुलना नीतिवचन 3:34 से करें)।

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