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प्रश्न

जब मैं किसी प्रियजन को मृत्यु के द्वारा खो देता हूँ तो मुझे सांत्वना और शान्ति कैसे मिलती है?

उत्तर


यदि आप किसी एक प्रियजन को मृत्यु के द्वारा खो देते हैं, तो आप जानते हैं कि यह एक पीड़ादायी अनुभव होता है। यीशु मन की निकटता में रहने वाले किसी प्रियजन को खोने की पीड़ा को समझता है। यूहन्ना की पुस्तक (11:1-44) में, हम सीखते हैं कि यीशु ने लाजर नाम के एक प्रियजन को खो दिया था। यीशु बहुत अधिक पीड़ा में आ गया था और अपने मित्र के मर जाने पर रोया था। यद्यपि, यह कहानी आँसू के साथ समाप्त नहीं होती है। यीशु जानता था कि उसके पास लाजर को मरे हुओं में से उठाने के लिए आवश्यक सामर्थ्य थी। यीशु ने कहा, "पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ; जो कोई मुझ पर विश्‍वास करता है वह यदि मर भी जाए तौभी जीएगा" (यूहन्ना 11:25)। यीशु ने अपने पुनरुत्थान के माध्यम से मृत्यु के ऊपर जय को प्राप्त किया है। यह जानकारी सांत्पना देती है कि मृत्यु उन लोगों के लिए अन्त नहीं है, जो विश्‍वास करते हैं। जो लोग उद्धारकर्ता के रूप में यीशु को जानते हैं, वे अनन्त जीवन को प्राप्त करेंगे (यूहन्ना 10:28)। परमेश्‍वर ने हमारे लिए एक नया घर तैयार किया है, जहाँ मृत्यु, आँसू या पीड़ा नहीं होगी (प्रकाशितवाक्य 21:1-4)।

चाहे हमें आश्‍वासन दिया जाता है कि हमारे प्रियजन एक सर्वोत्तम स्थान पर है, तौभी हम पृथ्वी पर उनकी अनुपस्थिति की पीड़ा का अनुभव करते हैं। अपने प्रियजन की मृत्यु पर दुखी होना सही है। यीशु लाज़र की मृत्यु पर रोया था, यहाँ तक कि यह जानते हुए भी कि वह लाजर को वापस जीवन में ले आएगा। परमेश्‍वर हमारी भावनाओं या हमारे प्रश्नों से नहीं डरता है। हम अपने बोझ को उसके ऊपर डाल सकते हैं और आश्‍वासन और सांत्वना को प्राप्त करने के लिए उसके प्रेम में भरोसा कर सकते हैं (1 पतरस 5:7)। हम अपने मरे हुए प्रियजनों के बारे में कई अच्छी बातें स्मरण कर सकते हैं और इस तथ्य से आनन्दित हो सकते हैं कि हम अपने जीवन में उन्हें साझा करने में सक्षम थे। हम अपने मरे हुए प्रियजनों के बारे में कहानियाँ साझा कर सकते हैं, जिन्होंने हमारे जीवन के ऊपर प्रभाव डाला है। हम अपने मरे हुए प्रियजनों की कुछ बातों को विशेष रूप से करते हुए आनन्दित होने या अपने घनिष्ठ सम्बन्धियों और मित्रों के साथ अपने मरे हुए प्रियजनों के बारे में स्मरण करते हुए कुछ समय व्यतीत करने में उनकी सहायता कर सकते हैं। हम अपने जीवन को उनकी स्मृतियों के अनुसार यापन करने के द्वारा इस तरह से सम्मानित कर सकते हैं, जो परमेश्‍वर को सम्मान और महिमा लाता है।

यह स्मरण रखना अति महत्वपूर्ण है कि परमेश्‍वर ही अन्ततः हमारी सांत्वना का स्रोत है (2 कुरिन्थियों 7:6)। जबकि हमारे मरे हुए प्रियजनों को स्मरण रखना और अपने जीवन में उनके प्रभाव का सम्मान करना अच्छी बात है, तथापि बाइबल स्पष्ट करती है कि हमें अपने प्रियजनों से प्रार्थना नहीं करनी है या किसी भी तरह से उनकी आराधना नहीं करनी है। इसकी अपेक्षा, हम अपनी प्रार्थना परमेश्‍वर के पास ले आते हैं और उसी से सांत्वना और चंगाई को देने के लिए कहते हैं। बाइबल हमें बताती है कि परमेश्‍वर दयालु पिता है और वह हमें हमारी सभी विपत्तियों में सांत्वना देगा (2 कुरिन्थियों 1:3-4)। आश्‍वस्त रहें कि परमेश्‍वर आपको प्रेम करता है और वह समझता है कि आप कितना अधिक पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं। परमप्रधान के आश्रय में भाग जाएँ जहाँ आपको मीठा विश्राम प्राप्त होगा (भजन संहिता 91:1-2)।

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