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प्रश्न

इसका क्या अर्थ है कि परमेश्वर रहस्यमयी तरीकों से काम करता है?

उत्तर


परमेश्वर उन तरीकों से काम करता है जिन्हें अक्सर "रहस्यमयी" माना जाता है — ऐसा कहने का अर्थ यह है कि, परमेश्वर के तरीके अक्सर लोगों को पूरी तरह से आश्चर्य में छोड़ देते हैं। परमेश्वर ने यहोशू और इस्राएल की सन्तान को एक सप्ताह तक यरीहो के शहर के चारों ओर चक्कर काटने के लिए क्यों कहा (यहोशू 6:1–4)? सम्भवतः पौलुस और सीलास को बिना कारण के कैद करने और पीटने से क्या भलाई निकल सकती है (प्रेरितों के काम 16:22-24)?

परमेश्वर जिन प्रक्रियाओं का उपयोग करता है, वह मानवीय स्वतन्त्रता और परमेश्वर की संप्रभुता का परस्पर सम्बन्धित होती हैं, और परमेश्वर के सर्वोच्च संकलन उस सीमा से परे के हैं जिसे सीमित मानवीय मन समझ सकता है। बाइबल और अतीत के युगों में पाए जाने वाले मसीहियों की गवाहियाँ इस बात की सच्ची कहानियों के साथ भरी हुईं हैं कि कैसे परमेश्वर ने एक परिस्थिति के बाद दूसरी परिस्थिति को, एक समस्या के बाद दूसरी समस्या को, एक जीवन के बाद दूसरे जीवन को, पूरी तरह से उल्टा — पुल्ट दिया — और ऐसा उसने अक्सर अपने सबसे अधिक अनापेक्षित, आश्चर्यजनक और न वर्णन किए जाने वाले तरीकों से किया।

यूसुफ का जीवन उस रहस्यमयी तरीके का एक सबसे अच्छा उदाहरण है, जिसमें कभी-कभी परमेश्वर काम करता है (उत्पत्ति 37:1-50:26)। उत्पत्ति 50:20 में, यूसुफ अपने भाइयों से कहता है कि, "यद्यपि तुम लोगों ने मेरे लिये बुराई का विचार किया था; परन्तु परमेश्‍वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया।" इस कथन में यूसुफ ने अपने जीवन की घटनाओं का सारांश दिया है, जिनका आरम्भ उसके भाइयों ने बुराई के साथ किया था और वह उनका अन्त इस पहचान के साथ समाप्त करता है कि ये सब उसकी वाचा के लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर की लाभकारी योजना का भाग थीं (उत्पत्ति 15:13-14)।

कनान में अकाल था जहाँ अब्राहम के वंशज, इब्रानी लोग बसे हुए थे (उत्पत्ति 43:1), इसलिए यूसुफ उन सभी को कनान से बाहर और मिस्र में ले आया (उत्पत्ति 46:26-27)। यूसुफ उन सभी के लिए भोजन प्रदान करने में सक्षम था क्योंकि वह मिस्र का राज्यपाल बन गया था और भोजन खरीदने और बेचने का प्रभारी था (उत्पत्ति 42:6)। मिस्र में यूसुफ क्यों था? युसूफ के भाइयों ने उसे लगभग बीस वर्ष पहले गुलामी में बेच दिया था और अब वे अपने भरण-पोषण के लिए उस पर निर्भर थे (उत्पत्ति 37:28)। विडम्बना यह है कि यूसुफ के जीवन में क्या हुआ, उसका यह एक छोटा सा ही भाग है; यूसुफ के इतिहास से परमेश्वर के विरोधाभासी आन्दोलन का स्पष्ट पता चलता है। यदि यूसुफ मिस्र पर राज्यपाल नहीं होता और अपने परिजनों को वहाँ न ले जाता, तो मूसा की कोई कहानी नहीं होती, चार वर्षों पश्चात् मिस्र से कोई निर्गमन नहीं होता (निर्गमन 6:1-8)।

यदि यूसुफ के पास कोई विकल्प होता कि उसके भाई उसे गुलामी में बेच सकते थे या नहीं, तो यह अनुमान लगाना तर्कसंगत होगा कि यूसुफ ने कहा होता कि "नहीं।" यदि यूसुफ को यह विकल्प दिया गया होता कि वह झूठे आरोपों के कारण कैद में जाए या नहीं (उत्पत्ति 39:1-20), तो एक बार फिर से, उसने कदाचित्त "नहीं" कहा होता। जिसने स्वेच्छा से इस तरह के दुर्व्यवहार को सहन किया? परन्तु यह मिस्र में ही हुआ कि यूसुफ अपने परिवार को बचाने में सक्षम था, और यह कैद में हुआ कि महल के लिए दरवाजा खोला गया था।

परमेश्वर "अन्त की बात की आदि" में ही घोषणा करता है (यशायाह 46:10–11), और हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि एक विश्वासी के जीवन की प्रत्येक घटना परमेश्वर की सर्वोच्च योजना को ही पूरा करती है (यशायाह 14:24; रोमियों 8:28)। हमारे मनों में, जिस तरह से परमेश्वर हमारे जीवन में और उसके माध्यम से उल्लेखनीय घटनाओं को बुनता है, वह अतार्किक और हमारी समझ से परे हो सकती हैं। तथापि, हम विश्वास से चलते हैं न कि देखने के द्वारा (2 कुरिन्थियों 5:7)। मसीही विश्वासी जानते हैं कि परमेश्वर के विचार उनके अपने विचारों से कहीं उच्च हैं और परमेश्वर के मार्ग हमारी तुलना में अधिक हैं, "जैसा कि आकाश पृथ्वी से ऊँचा है" (यशायाह 55:8–9)।

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